वर्ल्ड अर्थ डे हर साल 22 अप्रैल को मनाया जाता है. इस दिन को 22 अप्रैल को मनाने के पीछे की भी एक कहानी है. वैसे इस दिन को मनाने के पीछे मूल भावना यही है कि पृथ्वी के बिगड़ते स्वास्थ्य का खयाल रखने के लिए हम सभी सचेत हों और उन बातों पर ख्याल करें, जिससे पृथ्वी की सेहत बेहतर रहे.
किसी आंदोलन से ऊपर है यह दिन
सबसे खास बात यह है कि वर्ल्ड अर्थ डे यानि विश्व पृथ्वी दिवस अब एक उत्सव नही बल्कि आंदोलन से भी आगे निकल चुका है. यह ना तो किसी धर्म का उत्सव है और ना ही किसी राष्ट्र का उत्सव है. वैसे तो इसकी शुरुआत 1970 के दशक से हुई थी लेकिन 1990 के दशक से यह व्यापक रूप लेता गया है.
पेरिस समझौता भी इसी दिन
अब दुनिया के देश भी औपचारिक रूप से पर्यावरण संबंधी कार्य करने लगे हैं साल 2016 का मशहूर पेरिस समझौते पर इसी दिन दुनिया के 175 देशों ने हस्ताक्षर कर इस दिन का महत्व को रेखांकित किया था. संयुक्त राष्ट्र ने पृथ्वी दिवस को ध्यान में रखकर ही इस पेरिस समझौते के लिए चुना था.
कैसे बनी पृथ्वी दिवस की भूमिका
फिर भी कई लोगों के मन में यह सवाल उठात है आखिर 22 अप्रैल को ही पृथ्वी दिवस के लिए चुना गया. साल 1968 में अमेरिका में पर्यावरण कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया जिसमें छात्र वैज्ञानिकों के पर्यावरण के मानव स्वास्थ्य पर होने वाले प्रभावों के बारे में विचार सुन सकें. इसके बाद दो सालों तक अर्थ डे मनाने के प्रयास चलते रहे और 1970 में पहली बार पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल को मनाया गया.
ताकि ज्यादा से ज्यादा जमा हों छात्र
इन पृथ्वी दिवस के लिए अमेरिकी सीनेटर गेलॉर्ड नेल्सन ने विशेष प्रयास किया वे चाहते थे कि इस दिवस के लिए कॉलेच के कैम्पस से ज्यादा से ज्यादा छात्र भागीदारी करें. इसके लिए उन्हें 19 से 25 अप्रैल के बीच का समय सबसे सही लगा क्योंकि इस समय ना तो कॉलेज में परीक्षा होती थीं, ना ही छात्रों की गर्मी की छुट्टियों पड़ती थीं और ना ही किसी तरह का धार्मिक त्योहार की बाधा थी. इसलिए ज्यादा छात्रों की उपस्थिति के लिए उन्होंने 22 अप्रैल को चुना जो सप्ताह में बीच का दिन पड़ रहा था. और फिर बाद में 22 अप्रैल की तारीख हमेशा के लिए तय हो गई.
व्यापक मुद्दों ने ली जगह
अर्थ डे और उससे संबंधित पर्यवारणीय रैलियों को नतीजा था कि 1970 के साल के अंत में अमेरिकी सरकार ने पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी बना ली थी. शुरुआत में लोगों का ध्यान केवल प्रदूषण पर ही था लेकिन धीरे-धीरे 1990 के दशक के बाद से जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसे व्यापक मुद्दों के तहत यह आ गया. अब मानव जनित गतिविधियां, कार्बन उत्सर्जन जैसे शब्दों से इन समस्याओं को बेहतर परिभाषित किया जा रहा है.
पर्यावरण के लिहाज से दुनिया को पृथ्वी को व्यापक तौर पर देखने के जरूरत है ना कि पहले स्थानीय स्तर की अलग-अलग समस्याओं के रूप में. हर साल दुनिया का औसत तापमान वृद्धि मानव जनित गतिविधियों के नतीजे के तौर पर आंका जा रहा है तो औद्योगिक क्रांति के समय के औसत से 1.5 डिग्री पहले ही बढ़ चुका है. अब दुनिया को निर्णायक रूप से फैसले लेने की जरूरत है.
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